Unit -1 (Sindhu Ghati Sabhyata)
Period
- 2300 BC – 1750 BC (कार्बन डेटिंग के अनुसार)
- 2500 BC – 1500 BC ( मार्टिमर वहीलर के अनुसार)
- 2700 BC – 1700 BC ( अर्नेस्ट मैक के अनुसार)
- विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में, उत्तर पूर्व अफ़ग़ानिस्तान
- Extension – हड़प्पा सभ्यता भारत भूमि पर लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में त्रिभुजाकार स्वरूप में फैली हुई थी।
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सिंधु घाटी सभ्यता में लोग पत्थर ,धातुओं, सीप ,शंख का व्यापार करते थे। |
राजस्थान का खेतड़ी तांबे के लिए प्रसिद्ध था |
चांदी – राजस्थान का जावर , |
सोने का आयत कर्नाटक से , |
ओमान से तांबे का आयात |
गुजरात ,ईरान तथा अफगानिस्तान से बहुमूल्य पत्थरों का आयात किया जाता था । |
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग गेंहू, जौ, राई, मटर, ज्वार आदि अनाज पैदा करते थे।तिल और सरसों भी उपजाते थे। सबसे पहले कपास भी यहीं पैदा की गई। इसी के नाम पर यूनान के लोग इस सिण्डन (Sindon) कहने लगे। पशुपालन भी करते थे । बैल-गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर पाला जाता था। हड़प्पाई लोगों को हाथी तथा गैंडे का ज्ञान था। |
हड़पा के लोग आपस में पत्थर, धातु शल्क (हड्डी) आदि का व्यापार करते थे। एक बड़े भूभाग में ढेर सारी सील, एकरूप लिपि और मानकीकृत माप तौल के प्रमाण मिले हैं। |
वे चक्के से परिचित थे। |
ये अफ़ग़ानिस्तान और ईरान (फ़ारस) से व्यापार करते थे। |
रंगो में पशुओं की चर्बी और पशुओं के पुत्थे की हड्डी को प्याली के समान । |
- पकाई मिट्टी के ईंटो की सभ्यता
- कांस्य सभ्यता, नगरीय सभ्यता
- हरियूपिया
Location :- पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त का एक पुरातात्विक स्थल
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खोज 1878 पुरातत्विद श्री करनिघ्म ने |
खुदाई 1921 दयाराम साहनी |
रावी नदी मोंटगोमरी जिला , पाकिस्तान |
लिपि – चित्रमय लिपि ,396 चिन्हों का प्रयोग |
वास्तु और नगर विन्यास कला – उत्खनन में भवन, धान्यागार , स्नानागार, तालाब, समाधी,(हड़पा, मोहनजोदडो) मिले। |
आकार त्रिभुजाकार |
ताम्र मुद्राएं – ताम्र मुद्राएं मिली जिन पर पशुओं की आकृति है। |
विद्वानों ने ‘ ताबीज’ की संज्ञा दी |
आकार – 1.5 इंच, 0.5 इंच ,0.1 इंच |
प्रसिद्ध है – मोहरे ( टेराकोटा (पक्की मिट्टी ) की बनी होती थी। |
पक्की मिट्टी की मूर्तियों की निर्माण विधि – चिकोटी पद्धति |
सबसे बड़ी इमारत – अन्नागार ( 6 -6 की पक्तियों में निर्मित कुल 12 कमरे) |
हड़प्पा की सबसे विशेष बात थी यहाँ की विकसित नगर निर्माण योजना (योजना बंध नगर) । हड़प्पा तथा मोहन् जोदड़ो दोनो नगरों के अपने दुर्ग थे जहाँ शासक वर्ग का परिवार रहता था। प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर एक उससे निम्न स्तर का शहर था जहाँ ईंटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे। इन नगर भवनों के बारे में विशेष बात ये थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे। यानि सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं और नगर अनेक आयताकार खण्डों में विभक्त हो जाता था। |
ईंटो का आकार L |
हड़प्पा के कोठारों के दक्षिण में खुला फर्श है और इसपर दो कतारों में ईंट के वृत्ताकार चबूतरे बने हुए हैं। |
हड़प्पा के दुर्ग में छः कोठार मिले हैं जो ईंटों के चबूतरे पर दो पाँतों में खड़े हैं। हर एक कोठार 15.23 मी॰ लम्बा तथा 6.09 |
मी॰ चौड़ा है और नदी के किनारे से कुछ एक मीटर की दूरी पर है। |
कब्रिस्तान R – 37 और H के प्रमाण मिले है |
बर्तन भांडो पर मानवाकृति। |
पुरुष नर्तक – काले रंग के पत्थर से । |
नटराज का घोतक |
स्त्री के गर्भ से निकलता हुआ पौधा |
मां के साथ जुड़वा बालको की मर्णमूर्तियां |
ईंटो का आकार |
सर हिलाने वाले कुकुदमान ,दो तवंगी वृषभ,हाथी, सूअर, सिटी वाली चिड़िया। |
चित्रों की पृष्ठभूमि काली और चित्र लाल रंग से बने होते थे। |
मुर्दों का टीला |
सिंध का बाग |
खोज 1922 राखलदास बनर्जी |
सिंधु नदी |
सिंध के लटकाना , पाकिस्तान |
सबसे पुराना नियोजित और उत्कृष्ट शहर माना जाता है। यह सिंघु घाटी सभ्यता का सबसे परिपक्व शहर है। |
विशाल सार्वजनिक स्नानागार, जिसका जलाशय दुर्ग के टीले में है। |
यह ईंटो के स्थापत्य का एक सुन्दर उदाहरण है। |
मोहन जोदड़ो की दैव-मार्ग (डिविनिटि स्ट्रीट) नामक गली में करीब चालीस फ़ुट लम्बा और पच्चीस फ़ुट चौड़ा प्रसिद्ध जल कुंड है, जिसकी गहराई सात फ़ुट है। कुंड में उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती हैं। कुंड के तीन तरफ़ बौद्धों के कक्ष बने हुए हैं। इसके उत्तर में ८ स्नानघर हैं। कुंड से पानी बाहर निकालने के लिए पक्की ईंटों की नालियाँ भी बनाई गयी हैं।स्नानागार का फर्श पकी ईंटों का बना है। पास के कमरे में एक बड़ा सा कुआँ है जिसका पानी निकाल कर होज़ में डाला जाता था। |
इतिहासकारों का कहना है कि मोहन जोदड़ो सिंघु घाटी सभ्यता में पहली संस्कृति है जो कि कुएँ खोद कर भू-जल तक पहुँची।मोहनजोदड़ों से प्राप्त विशाल स्नानागार में जल के रिसाव को रोकने के लिए ईंटों के ऊपर जिप्सम के गारे के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी जिससे पता चलता है कि वे चारकोल के संबंध में भी जानते थे। |
दाढ़ी वाले योगी की मूर्ति,बैठे हुई सर रहित मूर्ति |
मातृदेवी, सर हिलाने वाले कुकुदमान , सलाई पर चलने वाले बंदर,सिटी वाली चिड़िया, टिकरे में नाव का रेखाचित्र,शिकारी |
मृग का शिकार करते हुए,मछुआरा कंधे पर बहंगी उठाए हुए। |
खोज – 1953 – 54 |
खुदाई – बी. बी. लाल |
खोज – यज्ञदत्त शर्मा |
सतलज नदी,पंजाब |
(सिंधु की सहायक नदी तिब्बत से निकलती है भारत में प्रवेश) |
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सर्वप्रथम खोजा गया हड़प्पा स्थल था। |
वस्तुओं के साथ चित्रित घुसर मर्तभाड मिले हैं । |
तांबे की कुल्हाड़ी के साक्ष्य मिले हैं |
शवों को अंडाकार गढ़ों में दफनाया जाता था |
मनुष्य के साथ पालतू कुत्ते को दफनाने के साक्ष्य। |
लघु हड़प्पा, मृत मानवों का नगर |
बहुत ही महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर है। |
खोज सन 1954 में हुई थी। रंग नाथ राव |
नदी भोगवा नदी ,अहमदाबाद |
(भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस शहर की खुदाई 13 फ़रवरी 1955 से लेकर 19 मई 1956 के मध्य की थी। ) |
बंदरगाह के साक्ष्य मिले |
तांबे का हंस । |
शतरंज के नमूने ,पंचतंत्र में वर्णित धूर्त लोमड़ी का अंकन, अनाज के बाल, हाथी दांत का पैमाना , युग्मित समाधी के साक्ष्य, |
गुजरात के काठियावाड़ |
सुकभादर नदी |
खुदाई – 1953-1954 में ए. रंगनाथ राव द्वारा की गई थी |
यहाँ । रंगपुर से मिले कच्ची ईटों के दुर्ग, नालियां, मृदभांड, बांट, पत्थर के फलक आदि महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ धान की भूसी के ढेर मिले हैं। |
वर्ष 1944 ई. के जनवरी मास में यहाँ पुरातत्त्व विभाग ने पुनः उत्खनन किया, जिससे अनेक अवशेष प्राप्त हुए। जिनमें प्रमुख थे- अलंकृत व चिकने मृदभांड, जिन पर हिरण तथा अन्य पशुओं के चित्र हैं; स्वर्ण तथा कीमती पत्थर की बनी हुईं गुरियां तथा धूप में सुखाई हुई ईंटे। |
परसराम का खीरा भी कहते है । |
यह सभ्यता का सबसे पूर्वी ज्ञात स्थल है। |
खुदाई- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 1958- 1959 में यज्ञ दत शर्मा |
हिंडन नदी के बाएं तट पर,(यमुना की सहायक नदी) |
मेरठ, उत्तर प्रदेश |
भट्टी में पकी हुई ईंटें साक्ष्य म (लेकिन इस काल की कोई संरचना नहीं मिली), |
कलाकृतियाँ मिलीं |
विशिष्ट हड़प्पा मिट्टी के बर्तन पाए गए। पाए गए सिरेमिक सामानों में छत की टाइलें, बर्तन, कप, फूलदान, क्यूबिकल पासा, मोती, टेराकोटा केक, गाड़ियां और कूबड़ वाले बैल और सांप की मूर्तियां शामिल हैं। मोती और कान के स्टड भी थे । |
दीन हीन व गरीबों की बस्ती कहा जाता है। |
काले रंग की चूड़ियां ( तांबे की काली चूड़ियों की वजह से ही इसे कालीबंगा कहा गया।) |
राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में। |
प्राचीन द्रषद्वती और सरस्वती नदी घाटी वर्तमान में घग्गर नदी पर अवशेष मिले। |
1952 ई में अमलानन्द घोष ने इसकी खोज की। |
बी.के थापर व बी.बी लाल ने 1961-69 में यहाँ उत्खनन का कार्य किया। |
यहाँ एक दुर्ग मिला है |
सर्वप्रथम जोता हुआ खेत मिला है । |
9 वर्षीय बालक की खोपड़ी में 6 छेद मिले। |
ताँबे और मिट्टी के औजार व मूर्तियाँ, हथियार मिले है। |
पशुओं में बैल, बंदर व पक्षियों की मूर्तियाँ मिली हैं। |
तोलने के बाट , तराजू |
काँच, सीप, शंख, घोंघों आदि से निर्मित आभूषण भी मिलें हैं। |
मोहन-जोदड़ो व हड़प्पा की भाँति कालीबंगा में भी सूर्य से तपी हुई ईटों से बने मकान, दरवाज़े, पांच से साढ़े पांच मीटर चौड़ी एवं समकोण पर काटती सड़कें, कुएँ, नालियाँ आदि पूर्व योजना के अनुसार निर्मित हैं। |
प्राप्त हुई हैं। बैलगाड़ी के खिलौने भी मिले हैं।कपास की खेती के अवशेष मिले। आयाताकार वर्तुलाकार व अंडाकार अग्निवेदियाँ। |
फतेहाबाद,हरियाणा |
यह नगर रंगोई नदी के तट पर स्थित था। |
खुदाई 1973 में आर.एस. बिष्ट द्वारा की गई । |
नदी सरस्वती (कालीबंगा सरस्वती की निचली घाटी जबकि यह नगर इसकी उपरी घाटी में स्थित था।) |
हड़प्पा स्थल पर मिट्टी से बना ‘हल’ बनवाली में मिला था। |
बटखरे, जो के दाने,तांबे के बनाग्र,मुहर,मनके,नालियों के अवशेष, धावन पात्र के साक्ष्य, अग्नि वेदिकाए, ठप्पे। |
गुजरात में कच्छ जिले में स्थित है। |
खोज पुरातत्वविद जगपति जोशी ने 1969 में |
1989 – 1991 तक आर. एस. बिष्ट के द्वारा इसका उत्खनन किया गया |
धोलावीरा का परिष्कृत जलाशय |
विशालतम हड़प्पा कालीन बस्ती। 3 भागों में विभाजित निम्न – मध्य – उच्च |
नगर योजना समांतर चतुर्भज |
पतन 2200 BC – 2000 BC |
व्यापार का मुख्य केंद्र ( कुबेरपतियो का महानगर ) |
सूचना पट्ट, जलाशय, स्टेडियम के साक्ष्य। |
दुर्गीकृत इलाका पश्चिम की बजाय दक्षिण में स्थित । |
धोलावीरा को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया।यह भारत का 40वां विश्व धरोहर स्थल है। |